शिरीष के फूल | हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का सामाजिक चेतना पर आधारित कालजयी निबंध
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : शिरीष के फूल — विस्तृत अध्ययन
1. मूल अंश (Original Quote):
"वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार ज़माने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नयी पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।"
स्रोत: हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, निबंध — "शिरीष के फूल"
2. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का परिचय:
विशेष:
द्विवेदी जी ने परंपरा और आधुनिकता के संतुलन को अपने निबंधों में अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत किया।
3. "शिरीष के फूल" मूल भाव और कविता स्वरूप:
"शिरीष" एक छोटा-सा वृक्ष होता है, जिसकी फुहारे जैसी कोमल फूलों वाली शाखाएँ वसंत ऋतु में फूटती हैं।
"शिरीष के फूल" का निबंध प्रतीकात्मक भाषा में उस नयी चेतना का चित्रण है जो पुरानी, जड़ीभूत व्यवस्था को चुनौती देती है।
मुख्य भावार्थ:
- वसंत के समय वनस्थली (जंगल) में सब कुछ नवीन हो रहा होता है।
- पुराने शिरीष के फल (जो सूख चुके हैं) उस नवीनीकरण में भी खड़खड़ाते रहते हैं — यानी विरोध करते हैं।
- लेखक को यह पुरानी व्यवस्था के जमे हुए लोगों की तरह प्रतीत होता है जो समय का रुख नहीं पहचानते।
- नई पौध, अर्थात् नई पीढ़ी जब तक उन्हें धक्का नहीं देती, वे अपनी जगह से हटने को तैयार नहीं होते।
कवि का गहन संकेत:
समाज में परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि पुराने विचारधारा के लोग स्वयं जगह नहीं छोड़ते, तो युवा चेतना उन्हें हटाने का साहस करती है।
4. मूल कविता का विस्तार और व्याख्या:
शब्दशः विस्तार:
-
वसंत के आगमन पर वनस्थली मर्मरित होती है:
जीवन का नवीन स्पंदन, उत्साह और नवीनीकरण। -
शिरीष के पुराने फल खड़खड़ाते हैं:
पुरानी, निष्प्राण व्यवस्थाएँ जो नयी सृजन प्रक्रिया में भी शोर मचाकर बाधा डालती हैं। -
नेताओं का प्रतीक:
वे लोग जो अपनी कुर्सी से चिपके रहते हैं, युग परिवर्तन को समझ नहीं पाते। -
नई पौध द्वारा धक्का:
युवा पीढ़ी की साहसिक भूमिका — जो समाज में नवीन ऊर्जा और सुधार लाती है।
5. परीक्षा उपयोगी प्रश्न एवं उत्तर:
(A) Very Short Questions (1 मार्क्स):
Q1. "शिरीष के फूल" के लेखक कौन हैं?
उत्तर: हज़ारीप्रसाद द्विवेदी।
Q2. "शिरीष" किसका प्रतीक है?
उत्तर: पुरानी व्यवस्था का प्रतीक।
(B) Short Questions (3-5 मार्क्स):
Q3. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने शिरीष के पुराने फलों की तुलना किससे की है?
उत्तर:
पुराने नेताओं या जड़ हो चुकी व्यवस्थाओं से, जो समय का रुख नहीं पहचानते और जबरन जमे रहते हैं।
Q4. शिरीष के फूल का निबंध क्या संदेश देता है?
उत्तर:
समय के अनुसार परिवर्तन आवश्यक है। पुरानी व्यवस्थाओं को हटाकर नई ऊर्जा और चेतना को स्थान देना चाहिए।
(C) Long Questions (10 मार्क्स):
Q5. 'शिरीष के फूल' निबंध का समाज सुधार के संदर्भ में विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
'शिरीष के फूल' निबंध समय की गति और नवीनता के महत्व पर प्रकाश डालता है। इसमें समाज में व्याप्त जड़ता का प्रतीकात्मक चित्रण किया गया है। वसंत ऋतु जैसे नई चेतना का प्रवेश प्राकृतिक नियम है, वैसे ही समाज में भी समय-समय पर सुधार और नवीनीकरण आवश्यक होता है। यदि पुरानी शक्तियाँ परिवर्तन में बाधा डालती हैं, तो नई चेतना के धक्के से वे हटती हैं। द्विवेदी जी ने यह सन्देश दिया कि परिवर्तन से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सहज रूप से स्वीकार करना चाहिए।
6. निष्कर्ष (Conclusion):
"जीवन और समाज में परिवर्तन एक अवश्यम्भावी प्रक्रिया है।"
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी का 'शिरीष के फूल' यही संदेश देता है कि पुरानी व्यवस्थाओं को समय पर पहचानकर, नई चेतना को अवसर देना चाहिए — तभी वसंत का सच्चा स्वागत होगा।
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