अकबर का प्रशासन, धार्मिक नीति और साम्राज्य विस्तार – संपूर्ण विश्लेषण

अकबर – प्रशासन, धार्मिक नीति और साम्राज्य विस्तार

जानिए मुगल सम्राट अकबर के प्रशासन, धार्मिक नीति, दीन-ए-इलाही, साम्राज्य विस्तार और नवरत्नों की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण। UPSC, SSC और अन्य परीक्षाओं के लिए उपयोगी सामग्री।


अकबर: भारत का महान सम्राट

जलाल-उद-दीन मोहम्मद अकबर (1556-1605) मुगल साम्राज्य का तीसरा शासक था, जिसने भारत को अपनी प्रभावशाली सैन्य नीतियों, प्रशासनिक सुधारों और धार्मिक सहिष्णुता से एक महान शक्ति में परिवर्तित कर दिया। अकबर न केवल एक शक्तिशाली सम्राट था बल्कि कला, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में भी अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किए।


अकबर का प्रशासन

अकबर ने एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिसे विभिन्न स्तरों में विभाजित किया गया था।

1. प्रशासनिक संरचना:

  • केंद्रीय प्रशासन: अकबर ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाकर एक केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली विकसित की।
  • सूबा व्यवस्था: पूरे साम्राज्य को 15 सूबों (प्रांतों) में विभाजित किया, जिन्हें सूबेदार (गवर्नर) चलाते थे।
  • परगना और ग्राम प्रशासन:
    • परगना – इसमें शिकारगाह (राज्य भूमि) और कृषि भूमि शामिल थी।
    • ग्राम प्रशासन – प्रत्येक गाँव का नेतृत्व मुखिया और पटवारी करते थे।

2. राजस्व प्रणाली (टोडरमल बंधोबस्त)

अकबर ने अपने वित्त मंत्री राजा टोडरमल की सहायता से राजस्व व्यवस्था में सुधार किए।

  • जमींदारी व्यवस्था – जमींदारों को कर संग्रह की अनुमति दी गई।
  • दहसाला प्रणाली – यह एक नई कर प्रणाली थी, जिसमें पिछले दस वर्षों के औसत उत्पादन के आधार पर कर तय किया जाता था।
  • कृषि कर – फसल के उत्पादन पर लगने वाला कर 1/3 से 1/4 तक था।

3. सेना और सैन्य प्रशासन

  • मानसबदारी प्रणाली:
    • प्रत्येक अधिकारी को एक ‘मानसब’ (पद) दिया जाता था, जिससे उसकी रैंक और वेतन तय होता था।
    • प्रत्येक मानसबदार को सैनिकों की एक निश्चित संख्या रखनी होती थी।
  • स्थायी सेना का गठन:
    • घुड़सवार सेना को मज़बूत किया गया।
    • बारूद और तोपखाने का बेहतर उपयोग किया गया।
  • अकबर के नौसेनाध्यक्ष:
    • अब्दुल रहीम खानखाना को नौसेना का प्रमुख बनाया गया।

अकबर की धार्मिक नीति

अकबर की धार्मिक नीति सहिष्णुता पर आधारित थी, जिसने उसे हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों का प्रिय बना दिया।

1. धार्मिक सहिष्णुता:

  • 1564 में जज़िया कर समाप्त किया – गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला यह कर हटा दिया गया।
  • हिंदू-मुस्लिम विवाह प्रोत्साहित किए – अकबर ने हिंदू राजकुमारी जोधाबाई से विवाह किया।
  • उच्च पदों पर हिंदुओं की नियुक्ति – राजा टोडरमल, बीरबल, और मान सिंह को उच्च पद दिए गए।

2. दीन-ए-इलाही (1582)

अकबर ने विभिन्न धर्मों के सार को मिलाकर एक नया धर्म "दीन-ए-इलाही" की स्थापना की।

  • इस धर्म में इस्लाम, हिंदू, बौद्ध, जैन, और ईसाई धर्म के तत्वों का समावेश था।
  • हालांकि, यह धर्म व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया।

3. इबादतखाना (1575)

  • अकबर ने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना की स्थापना की, जहाँ विभिन्न धर्मों के विद्वानों को बुलाया जाता था।
  • इसमें हिंदू, जैन, ईसाई, पारसी और इस्लामिक विद्वानों ने भाग लिया।

अकबर का साम्राज्य विस्तार

अकबर ने अपनी सैन्य शक्ति और कूटनीति के बल पर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।

1. उत्तर भारत पर विजय:

  • 1556: पानीपत की दूसरी लड़ाई (हेमू को हराया)
  • 1561: मालवा विजय
  • 1564: गोंडवाना पर कब्जा
  • 1572: गुजरात विजय
  • 1573: बंगाल और उड़ीसा पर विजय

2. राजस्थान और पश्चिम भारत:

  • 1576: हल्दीघाटी का युद्ध (राणा प्रताप को हराया)
  • 1591: कंधार पर कब्जा
  • 1595: बलूचिस्तान पर विजय

3. दक्षिण भारत का विस्तार:

  • 1591 से 1601 तक अकबर ने अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा पर विजय प्राप्त की।

अकबर के नवरत्न

अकबर के दरबार में नौ प्रमुख विद्वान और मंत्री थे, जिन्हें ‘नवरत्न’ कहा जाता था।

  1. बीदराम बीरबल – हास्य और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध।
  2. राजा टोडरमल – वित्त मंत्री और दहसाला प्रणाली के निर्माता।
  3. मान सिंह – सेना के प्रमुख सेनानायक।
  4. तानसेन – महान संगीतज्ञ।
  5. अबुल फज़ल – अकबरनामा और आईने-अकबरी के लेखक।
  6. फैजी – फारसी कवि।
  7. अब्दुल रहीम खानखाना – कवि और सैन्य अधिकारी।
  8. हकीम हुमाम – चिकित्सा विशेषज्ञ।
  9. मुल्ला दो प्याजा – अकबर के सलाहकार।

अकबर की मृत्यु और विरासत

  • अकबर का निधन 1605 में हुआ, जिसके बाद उसका पुत्र जहाँगीर गद्दी पर बैठा।
  • अकबर की नीति, प्रशासन और धार्मिक सहिष्णुता भारत के इतिहास में एक महान अध्याय के रूप में देखी जाती है।

निष्कर्ष

अकबर न केवल एक शक्तिशाली योद्धा था, बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक भी था। उसकी नीतियाँ, विशेष रूप से धार्मिक सहिष्णुता, प्रशासनिक सुधार और साम्राज्य विस्तार ने भारत के इतिहास को गहराई से प्रभावित किया।

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